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Blog / 04 Sep 2019

(आर्थिक मुद्दे) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (Consumer Protection Act, 2019)

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(आर्थिक मुद्दे) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (Consumer Protection Act, 2019)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय शंकर (पूर्व उद्योग सचिव), शिशिर सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार, हिंदू बिजनेस लाइन)

चर्चा में क्यों?

बीते 9 अगस्त को उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 पर राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी। यह उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 का स्थान लेगा। इस क़ानून के जरिए उपभोक्ता के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है। साथ ही, दोष-पूर्ण सामानों या सेवाओं में ख़ामी के मामले में शिकायतों के निवारण के लिये एक सिस्टम बनाने की भी बात कही गई है।

क्यों जरूरी था यह कानून?

साल 1986 से लेकर अब तक उपभोक्ता बाज़ारों में काफी बदलाव आया है। मौजूदा वक्त में तमाम प्रकार के अनुचित नियम और शर्तों के चलते उपभोक्ताओं के सामने असमंजस के हालात होते हैं। बदलते उपभोक्ता बाज़ारों में पुराने क़ानूनों की प्रासंगिकता कम हो रही है मसलन e-कॉमर्स और टेलीमार्केटिंग के लिए पुराने उपभोक्ता कानून में प्रावधान नहीं थे। इसके अलावा इस उद्योग के लिए कोई विनियामक संस्था नहीं थी। ऐसे में, उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक नए क़ानून की ज़रूरत महसूस की जा रही थी।

कौन है उपभोक्ता?

इस नए क़ानून के मुताबिक उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु या सेवा खरीदता है। ग़ौरतलब है कि इसमें उपभोक्ता की परिभाषा के तहत ऐसे व्यक्ति नहीं आते जो कमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को खरीदते हैं।

कौन-कौन से अधिकार हैं उपभोक्ताओं के?

ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा दी गई है जो जीवन और संपत्ति के लिहाज़ से जोखिम भरा साबित हो सकते हैं। साथ ही, बेचने वालों के लिए वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी देना जरूरी होगा। अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की भी मांग की जा सकती है।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी CCPA

उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षण देने के लिहाज से इस कानून में एक प्राधिकरण गठित करने की बात कही गई है।

  • इसके मुताबिक़ केंद्र सरकार केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी CCPA का गठन करेगी।
  • यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों की जांच करेगी।
  • अगर कोई विज्ञापन भ्रामक है तो उसके लिए तीन श्रेणियों को रखा गया है- मैनुफैक्चरर, पब्लिशर और सेलीब्रिटी।
  • प्राधिकरण चाहे तो भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्माता और उसे प्रचारित करने वाले पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगा सकती है या फिर दो साल के लिए जेल की सज़ा दे सकती है।

उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन यानी CDRC

ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का गठन किया जाएगा। अगर उपभोक्ता को यह लगता है कि अनुचित और प्रतिबंधित तरीके से व्यापार किया जा रहा है या फिर दोषपूर्ण वस्तु या सामान बेचा जा रहा है तो वह इस CDRC में शिकायत कर सकता है। इसके अलावा ज्यादा या गलत तरीके से कीमत वसूलने या फिर जीवन और सुरक्षा के लिहाज से जोखिमपूर्ण सामानों या सेवाओं को बेचने की दशा में भी शिकायत किया जा सकता है।

ग़ैरक़ानूनी कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय CDRCs में फाइल की जा सकती है। ज़िला CDRC के आदेश के खिलाफ राज्य CDRC में सुनवाई की जाएगी। राज्य CDRC के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRC में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को होगा।

कौन-कौन से मामले CDRCs के दायरे में आएंगे?

एक करोड़ या उससे कम की कीमत वाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई ज़िला CDRC की जाएगी। साथ ही, एक करोड़ से लेकर 10 करोड़ तक के मामलों की सुनवाई राज्य CDRC में की जाएगी। 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ी शिकायतों की सुनवाई राष्ट्रीय CDRC में की जाएगी।

क्या ख़ामियाँ रह गई इस नए क़ानून में?

जहां एक तरफ इस कानून के जरिए उपभोक्ता बाजार की कई समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की गई है वहीं कुछ विश्लेषकों ने इसकी ख़ामियों की तरफ भी इशारा किया है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि इस नए कानून के तहत कंपनियों को बतौर उपभोक्ता नहीं माना जाएगा। यानी अगर आप व्यापारिक उद्देश्य से कोई वस्तु या सेवा ख़रीद रहे हैं, तो आपको उपभोक्ता नहीं माना जाएगा। ऐसे में अनुचित व्यापार पद्धतियों को बढ़ावा मिल सकता है।